"छेड़छाड़ " यह हर लड़की की कहानी है। बलात्कार जैसे शर्मनाक कृत्य के खिलाफ आवाज उठाना कितना महत्वपूर्ण है यह हम सब जानते हैं, परंतु ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता है। वर्षों से इस विषय को चर्चा का विषय ही नहीं माना गया। अधिकांश मामले तो कई कारणों वश कभी रिपोर्ट ही नहीं कीए जाते हैं।
शोध के अनुसार "यह अनुमान लगाया गया है कि हर दस लड़कियों में से कम से कम दो और हर दस लड़कों में से एक अपने 13 वें वर्ष के अंत तक यौन दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं "। कवि " बलात्कार पर व्यंग्य काव्य " के माध्यम से जन जागृति लाने का प्रयास कर रहा है ।
बलात्कार पर कविता (व्यंग्य काव्य)
वक़्त बदल रहा है, जी हां बदल रहा है
पहले दहेज के डर से बेटी गिरा देते थे,
तो आज बलात्कार के डर से।
पहले दोष देते थे घूंघट सरकने को ,
तो आज बच्ची की स्कर्ट को।
वो किसी बदनसीब की नन्हीं जान रही होगी।
कल निर्भया थी आज ज्योति है कल कोई और होगी।
वक़्त बदल रहा है, जी हां बदल रहा है।
पहले छलकाते थे आंसू कुछ पल,
तो आज सड़क पर मोमबत्ती जला आते हैं।
देखकर ये नौटंकी बलात्कारी मुस्कुराते हैं।
पहले वो लड़ती थी ज्ञान के लिए,
तो आज मुद्दा सुरक्षा है।
ख्वाब अपना इस पंछी ने अंधेरों में समेटा है।
न कऱो आस द्रौपदी, दर्शक आज भी मूक रहेंगे,
नेत्र-श्रुतिपटल पर पर्दा डाले, विवशता का स्वांग रचेंगे।
खुद की प्रकृति मैली इनकी तुम्हें क्या न्याय दिलायेंगे।
इज्जत उछाल दरिंदे कानून का दामन थामेंगे ,
उठा लेना शस्त्र इस बार न कान्हा आयेंगे ।
जानती हूं उपदेश देना बहुत ही आसान है ,
मगर याद रखना ह्रदय में मेरे हमेशा तुम्हारा सम्मान है।
नारी को भी मानवीय हक दिलाने का इरादा है ,
वक़्त बदलने का ये हमारा आपसे वादा है ।

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हम सभी स्वतंत्रता से प्यार करते हैं, यह हर जीवित जीव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है चाहे वह इंसान हो या जानवर। कोई भी पाबंदियों में नहीं रहना चाहता, हर किसी को समानता का अधिकार है अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार है ।

वह एक मजबूत महिला है विनम्र और एक दयालु आत्मा है। उसके पास वह ममता है, जो सबको समझती है। उसकी उपस्थिति क्षतिग्रस्त लोगों के निशान को ठीक करती है, फिर भी महिलाओं को इतना कुछ सहना पड़ता है कि कोई भी पुरुष कल्पना नहीं कर सकता है, फिर भी, "उन्हें ही दोष दिया जाता है " सिर्फ इसलिए कि वे महिला/ लड़की , है । क्या ये सही है ? क्या लड़की होना गलत है ?
उन्हें एक सीमा में रहने को कहा जाता है, उन्हें पाबंदियों में रखा जाता है, उनके अधिकारों का हनन किया जाता है ओर उन्हें कौटुम्बिक व्यभिचार, यौन उत्पीड़न, हिंसा, बलात्कार, घरेलु हिंसा, बदमाशी, छेड़छाड़, का शिकार बनाया जाता है। मार दिया जाता है, आत्म हत्या करने पर मजबूर किया जाता है। आखिर क्यूँ ? क्योंकि मानवता अब नहीं रह गयी है। बची है तो बस क्रूरता।
मैं बस यही चाहता हूं कि हमें महिलाओं को समझना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए। उनके पैर कुतरने से अच्छा है कि हम कम पैर फैलायें ,ताकि हमारे बीच भी सुरक्षित महसूस कर सके ।
किसी भी अन्य लड़की के साथ कुछ भी बुरा करने से पहले बस इतना सोचें कि क्या होता, अगर वही व्यवहार उसके साथ किया जाए, जिसकी आपको परवाह है।
कुतरो मत पंख उनके , तुम थोड़े पंख पकड़ा दो अपने भले से ! मत मारो चोट अपने स्वाभिमान पर और उड़ान भरने दो ऊँची खुद से!!
"बलात्कार" Poem On A Rape Victim
चलो आज एक मुद्दे पे बात करते हैं रुह से नहीं तुम्हें जिस्म से ज्ञात करते हैं उन झुलसते हुए दिनों की नहीं , उन अंधेरों में कुचलती रातों की बात करते हैं। हर सवेरा मेरा बहबूब कहलाता है सूरज की किरण एक आईना दिखलाता है मजहब के इत्रों से दुर थी में , कि मेरा रूहानी इत्र ही मुझे बतलाता था। दरिंदों को यह बात रास ना आई रास्तों पे चलते उन्हें जिस्म की महक सी आई घूर के खाने की तलब थी उनकी तभी उनके आँखों में दरिंदगी सी आई।
कुछ दूर चलते ही मेरे पैर घबराने लगे बेबस से चेहरे पे पसीने सहलाने लगे धुप की किरण चुभती थी अक्सर आज तो बादल भी इतराने लगे ।
अब कुव्वत से जकड़ उनकी हैवानियत की पकड़ सहम चुकी थी मैं देख के उनकी आँखों की भड़क । रोंद रहे थे वो मेरे जिस्म को मेरे चीखते हालातों का सिलसिला सुरू हुआ आँखों से आँसू इस कदर बरस रहे थे की मेरे जिस्म का तड़पना सुरू हुआ ।
मेरे जिस्म को वो बर्बाद करना चाह रहे थे पर उन्हें नहीं पता ये जिस्म भी रूह से चलता है हैवान क्या जानें इज्जत का गुरूर उसे नहीं पता की इंसानियत भी इंसान से चलता है।
वो लोग अब जा चुके थे, छोड़ कर मेरे जिस्म को सड़क के कोने में बन कर लाश वंही पड़ी थी मैं होंसला टूटा हुआ और लगी रही मैं रोने में।
कुछ देर बाद खुद को समेट कर पहुँच गई घर हालातों को समझ कर डरी हुई थी मेरी रूह कि वो भी रो रही थी जिस्म को लपेट कर।
सोचा माँ से ज़िक्र करूँ पर हाथ पांव काँप रहे थे समाज में को मुंह उठाकर चला करती थी अब आँखें भी जमीन का रास्ता नाप रहे थे। अंदर ही अंदर मर रही थी मैं उस शाम कुछ बातें लिखना अच्छा समझा मेने कायरे थी में जो झुलस न पाई इस तपन से चांदनी रात में फांसी लगाकर मरना अच्छा समझा मैने।
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हम महिलाओं के हक की बात करते हैं, उनके काली स्वरूप की बात करते हें। हम बात करते हैं उनके सृजन करने की क्षमता पर और बात करते हैं उनके बंधन में रहने के बाद भी कैसे आसमान को पूरा नाप लेने की काबिलियत की।
आज भी उनकी हालत में सुधार निम्न कोटि का ही है। आज भी क्या उनकी हालत में पूर्ण रूप से सुधार है? बराबरी का दर्जा है ??? तो फिर क्या यह केवल मिथ्या है ??? हां यह अवश्य हो सकता है और है भी कानून की नजरों में और दस्तावेजों में पर क्या बिना हिपोक्रेसी के हम मान ले की यह पूर्ण रूप से सत्य है तो जवाब होगा नहीं। तो फिर क्या जरूरत है Girls First जैसे अपवाद की और यह सिखाने की कि लड़कियों को इज्जत देना जरूरी है ।
क्या हम एक भी मौका छोड़ते हैं उनको यह याद दिलाने का की तुम एक लड़की हो और तुम्हें ऐसा और यह करना चाहिए।
क्या लड़कों के मामले में भी हम यही सिखाते हैं ? नहीं ना तो अब यही कहना ठीक रहेगा कि अभी सुधार बाकी है। जब हम यह फर्क मिटा देंगे तो इस तर्क का भी फर्क मिट जाएगा और उसके बाद हम फक्र से कह सकते हैं कि हमारा समाज सर्वोत्तम है।।।
(आवाज) Save Girl Child Poem in Hindi
कूतरो मत पंख उनके !
तुम पंख पकड़ा दो अपने भले से !!
आसमान ना कर पाओ नाम उनके !
पर उड़ान भरने तो दो ऊंची खुद से !!
शक्ति को पूजते है साल में दो बार हम !
दिन में दो बोल तो बोल लो बेहतरी के !!
बराबरी की बात तो रही सही !
उनके होने का ही अधिकार दे दो पहले सही से !!
वो नहीं चाहती तुमसे तुम्हारी जमीन में हिस्सा !
तुम इस धरती का ही मान लो कहीं से !!
वूमेंस डे मनाना बाद में तुम !
पहले हियुमन ही मान लो उन्हें सही से !!
वूमेन इमापावरमेंट जैसी चीज ना रहेगी !
तुम अधिकार बराबर करके तो देखो कहीं से !!
कूतरो मत पंख उनके !
तुम पंख पकड़ा दो अपने भले से !!

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बलात्कार Poem On A Rape Victim In Hindi | Pain Of A Rape Victim